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कविता---रोटी की कीमत


कविता--रोटी की कीमत

ठिठकी, गले में अटकी
वह बूढ़ा कुलबुला रहा था
सर्द रातों में कुहासों के साथ
ठिठुरते अपनी धुंधली आँखों से
उम्मीद के पल निहार रहा था
उसे अब तक समझ नहीं था कि,
उसे जरूरत किसकी थी
ठंड से ठिठुरते शरीर को ढंकने के लिए कंबल कि या
भूख से बिलबिलाते पेट.को भोजन की
दोनों की ही जरूरत थी,मगर
आज सूर्य कोहरों के पीछे ही अस्त हो गया था
आज दिन में ही रात ढल गया था
थककर वह बूढ़ा व्यक्ति वहीं सड़क पर ढेर हो गया था..!
अब रोटियां कुत्ते खा रहे थे. ..!
**
सीमा..✍️
#दैनिक प्रतियोगिता
कविता

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6 Comments

Abhinav ji

23-Sep-2022 07:50 AM

Very nice

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Swati chourasia

23-Sep-2022 06:36 AM

बहुत खूब 👍👌

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Wooow,,,, बेहतरीन बेहतरीन,,, क्या लिखा है,,,, मार्मिक वर्णन,, Superve

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